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खड़गे के सिपाहसलारों की यूं ही चली तो होगा केसरी सरीखा हाल
टीम राहुल से टकराव के मूड में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे?
रितेश सिन्हा (वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक)
नई दिल्ली-
कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभालने के बाद मल्लिकार्जुन खड़गे को कड़ी आलोचनाओं के बाद अपनी कांग्रेस कार्यसमिति का गठन करने में 8 महीने से अधिक का समय लगा। खड़गे अध्यक्ष बनने के बाद से ही नाराज चल रहे हैं। खड़गे बतौर कांग्रेस अध्यक्ष अपने कमरे में बैठने से परहेज करते रहे हैं। एआईसीसी में बने-बनाए सेट अप में खुद को फिट नहीं पा रहे हैं। अपने लोगों की तलाश में एक लंबे समय के बाद वर्किंग कमिटी का गठन किया जिसमें चुन-चुन कर राहुल-प्रियंका समर्थक नेताओं को बाहर रखा गया। खड़गे कर्नाटक जीत का सेहरा अपने सिर पर बांधे घूम रहे हैं जबकि कर्नाटक का चुनाव पक्के तौर पर प्रियंका गांधी के जोरदार चुनाव प्रचार अभियान और राहुल के भारत जोड़ो यात्रा से बने माहौल का असर था। भाजपा सरकार भ्रष्टाचार के बड़े आरोपों का सामना कर रही थी। ये सभी जीत का कारण बने। खड़गे अपने आखिरी दम तक चुनाव के उपरांत कर्नाटक की बागडोर अपने हाथों में लेना चाहते थे, लेकिन एआईसीसी के थिंक टैंक ने उनको कर्नाटक जाने से रोक लिया।
एआईसीसी में जो नई टीम बनाई गई उसमें दीपक बाबरिया के अलावा फिर से ग्रुप 23 के लोगों को ही उसका हिस्सा बनाया गया है। कोषाध्यक्ष पवन बंसल को वर्किंग कमिटी से हटाकर उन्हें स्थाई आमंत्रित सदस्य का दर्जा दिया गया है और उन्हें कोषाध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया जा रहा है। पवन बंसल टीम राहुल के पसंद हैं और बखूबी अपने काम को अंजाम देते आए हैं। वर्किंग कमिटी के मुख्यतः अध्यक्ष, कोषाध्यक्ष और महासचिव उसका हिस्सा होते हैं, लेकिन खड़गे ने अपने सिपाहसलारों को साथ मिलकर पवन बंसल को एआईसीसी से बाहर रखने की एक कोशिश की। फिलहाल बंसल छुट्टी पर हैं, वहीं खड़गे और उनकी टीम के पास हौसला नहीं है कि किसी दूसरे नेता को कोषाध्यक्ष बना सकें।
कोषाध्यक्ष रहते हुए राज्यसभा का सदस्य निर्विवाद रूप से आसानी से बना जा सकता है। कर्नाटक से पांच सीटों पर राज्यसभा की गुंजाइश है जिस पर खड़गे के सिपाहसलार नासिर हुसैन, गुरदीप सिंह सपल, आनंद शर्मा, अजय माकन और खुद को कोषाध्यक्ष का डिपुटी कमांडर बताने वाले मनीष चतरथ भी दावा ठोक रहे हैं। फिलहाल कोई नियुक्ति अभी नहीं हुई है। वर्किंग कमिटी बनने के बाद पहली मीटिंग तेलांगना के हैदराबाद में 16-17 सितंबर को प्रस्तावित है। अपने-अपने लोगों को एडजस्ट करने मेंं भिड़े खड़गे ने दीपक बाबरिया को भी वर्किंग कमिटी में खासी प्रमुखता दी है। एक समय मध्य प्रदेश में सिंधिया के सिफारिश पर राहुल गांधी ने उन्हें मोहन प्रकाश को हटाते हुए वहां का महासचिव प्रभार दिया था। जहां उन पर टिकट वितरण में बड़े घपलों की शिकायतों के बाद हटा दिया गया था। हर जगह टिकट बांटने में खासे बदनाम हो चुके अविनाश पांडे भी वर्किंग कमिटी का हिस्सा हैं। महाराष्ट्र में कांग्रेस के सुनहरे दिनों में खड़गे वहां पहले स्क्रिनिंग का जिम्मा लिया, फिर वहां के प्रभारी बने और उसके बाद कांग्रेस की दुर्गति विदर्भ सहित पूरे सूबे में हो गई। उसी प्रदेश से दो प्रमुख व्यक्ति अशोक चव्हान और विजय वडेतीवार ने पूरा प्रदेश की बागडोर सौंपी और अब कांग्रेस का एक सांसद भी वहां से नहीं बचा। वहीं अशोक चव्हान अब वर्किंग कमिटी का हिस्सा हैं जिनकी नजर कोषाध्यक्ष पद पर जमी हुई है।
पश्चिम बंगाल में ममता के टीएमसी के बाद हाफ हुई कांग्रेस की कमान अधीर रंजन चौधरी के हाथों में सौंप कर पार्टी को पूरी तरह से सूबे में पूरी तरह से साफ कर दिया है। अधीर कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे के साथ मिलकर पश्चिम बंगाल में कांग्रेसियों को ममता की तरफ ढकेलने में जुटे हैं। अधीर रंजन चौधर के पास फिलहाल पांच प्रमुख पद हैं जो उन्हें खड़गे की खड़ाऊं उठाने और खड़ताल बजाने के लिए ईनाम के तौर पर दिए गए हैं। लोकसभा में नेता सदन, संसद की पब्लिक एकाउंट्स कमिटी के अध्यक्ष, कांग्रेस की वर्किंग कमिटी, एआईसीसी की सीईसी के सदस्य के अलावा पश्चिम बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष का पदभार भी अधीर के पास है। नाम के तौर पर पूर्व कांग्रेसी दिग्गज प्रियरंजन दास मुंशी की पत्नी को दीपा दास मुंशी को एआईसीसी के प्रमुख मामलों से जोड़ कर बंगाल के नेताओं के कोटे की खानापूर्ति की गई है।
अध्यक्ष बनते ही खड़गे ने पहली नियुक्ति बिहार प्रदेश के अध्यक्ष के तौर पर अखिलेश प्रसाद सिंह की की, जिनके पदाधिकारियों की कारगुजारियों की लंबी फेहरिस्त है। इनमें दलितों की हत्या में शामिल नेता, सजायाफ्ता, जमानत पर चल रहे, भाजपा का सार्वजनिक मंचों से गुणगान करने वाले नेताओं की सूची है। जयपुर के चिंतन शिविर में पदाधिकारियों को लेकर जो शर्ते तय की गई थी, उसको पूरी तरह से खड़गे और उनके सिपाहसलारों ने नकार दिया है। लालू-नीतीश के दवाब में खड़गे ने बिहार के नेताओं की दिल्ली में आहुत बैठक की आहुति दे डाली। उसके बाद से प्रदेश के नेताओं का मनोबल टूट चुका है जिसका परिणाम आगामी चुनाव में नतीजों को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।
दिग्विजय सिंह लगातार वर्किंग कमिटी में पिछले 25 सालों से जमे हुए हैं। उनके बोल वचन के कारण कांग्रेस की हमेशा फजीहत हुई है। दिग्विजय के मुख्यमंत्री कार्यकाल में हुए कारनामों की वजह से लगभग दो दशक से अधिक समय से कांग्रेस अभी तक मध्य प्रदेश में वापसी नहीं कर पायी। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की जोड़ी ने मध्य प्रदेश प्रभारी जेपी अग्रवाल की छुट्टी करवा कर पूरे प्रदेश को अपनी मुट्ठी में दबोच लिया है। नए प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला भी उनकी पकड़ को ढीली करने में अब तक नाकाम रहे हैं। नाम की स्क्रिनिंग कमिटी में भंवर जितेंद्र, अजय लल्लू सरीखे लोग कमलनाथ-दिग्गी के आगे घुटने टेक चुके हैं। ओबीसी बाहुल्य प्रदेश मध्यप्रदेश के राज्ससभा सांसद राजमणि पटेल की सिफारिशों को एक सिरे से खारिज कर दिया गया है। सीटों की भले ही अब तक घोषणा नहीं हुई है लेकिन जो फार्मूला बाजार में तैर रहा है, उसके अनुसार हाईकमान के लिए 17 सीटों के अलावा बाकी सभी सीटों पर कमलनाथ-दिग्गी का फार्मूला तय है। वैसे तो सुरेश पचौरी भी स्क्रिनिंग कमिटी की बैठक में शामिल हुए, मगर किसका टिकट बचा पाएंगे, इसमें संदेह है। देखना है कि तेलांगना में होने वाली वर्किंग कमिटी में कौन सा फार्मूला तय होता है। अब तक चर्चा में है इंडिया खेमे की टिकट बंगाल में ममता, बिहार में लालू-नीतीश, महाराष्ट्र में पवार, दिल्ली-पंजाब-हरियाणा में केजरीवाल, तमिलनाडू में स्टालिन ही कांग्रेस के नेताओं का भविष्य तय करेंगे। ऐसे हालात में खड़गे के नेतृत्व में कांग्रेस को कितनी सीटें मिलेंगी, ये सवाल हर कांग्रेसियों के जेहन को कुरेद रहा है।
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