परिवार नियोजन शिशु-मातृ स्वास्थ्य व मृत्यु दर को नियंत्रित करने का भी तरीका : शाही

आयुष्मान कार्ड बनाने में बिहार देश में तीसरे स्थान पर

- सामुदायिक रेडियोकर्मियों का स्वास्थ्य विषयक दो दिवसीय उन्मुखीकरण कार्यशाला समाप्त

पटना, 5 दिसम्बर.
देश में आयुष्मान कार्ड बनाने के मामले में बिहार तीसरे स्थान पर है. किसी एक दिन में सर्वाधिक आयुष्मान कार्ड बनाने का कीर्तिमान भी बिहार के नाम है. बिहार में इस आयुष्मान कार्ड पर अभी प्रतिदिन औसतन 400 लोगों को मुफ्त इलाज मिल रहा है. इस एवज में विभिन्न अस्पतालों को प्रतिदिन औसतन लगभग 4 करोड़ रूपये का भुगतान हो रहा है. बिहार स्वास्थ्य सुरक्षा समिति के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी शैलेश चन्द्र दिवाकर ने ये उल्लेखनीय आंकड़ें स्वास्थ्य संबंधी विषयों पर जनजागरूकता के लिए आयोजित दो दिवसीय उन्मुखीकरण कार्यशाला में गुरुवार को समापन सत्र में बताये. इस कार्यशाला में राज्य के नौ सामुदायिक रेडियो के अधिकारी और प्रसारक भाग ले रहे थे जिसका आज समापन हो गया. श्री दिवाकर ने हर पात्र व्यक्ति को आयुष्मान कार्ड बना लेने की अपील की.

स्वैच्छिक संस्था सीकिंग मॉडर्न अप्लीकेशंस फॉर रियल ट्रांसफार्मेशन (स्मार्ट) द्वारा आयोजित इस कार्यशाला में रेडियो मयूर (छपरा), रेडियो गूँज (हाजीपुर), रेडियो स्नेही (सीवान), रेडियो रिमझिम व रेडियो वर्षा (दोनों गोपालगंज), रेडियो एक्टिव व रेडियो ग्रीन (दोनों भागलपुर) समेत कृषि विज्ञान केंद्र सामुदायिक रेडियो बाढ़ (पटना) और कृषि विज्ञान केंद्र सामुदायिक रेडियो मानपुर (गया) के संचारकर्मियों ने भाग लिया.

राज्य के अपर निदेशक सह राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी (परिवार नियोजन) डॉ. ए. के. शाही ने कार्यशाला में कहा कि परिवार नियोजन केवल जनसंख्या स्थिरीकरण के लिए ही जरूरी नहीं है. बल्कि यह शिशु-मातृ स्वास्थ्य और मृत्यु दर को नियंत्रित करने से है. देश में सभी का स्वस्थ रहना पहले जरूरी है. इसलिए शादी कब करें, शादी के बाद पहला बच्चा दो साल बाद ही क्यों पैदा करें, दो बच्चों के बीच तीन साल का अंतर क्यों रखें और इसके लिए परिवार नियोजन के उपलब्ध विभिन्न साधन क्यों आवश्यक हैं, इस पर उन्होंने विस्तार से बताया. इसके लिए उन्होंने पुरुष नसबंदी को अनिवार्य बताया. पूछा कि क्यों सारी जिम्मेवारी महिलाओं पर डाल दी जाती हैं? उन्होंने एक चौंकाने वाला तथ्य बताया कि एक तरफ प्रति वर्ष चार लाख महिलाएँ बंध्याकरण करवाती हैं जबकि केवल ढाई से तीन हजार पुरुष नसबंदी हो पा रहा है. दूसरी तरफ पुरुष नसबंदी ज्यादा सहज और आसान है. इससे उनके बाकी के जीवन और स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है.

फाइलेरिया रोग और इसके उन्मूलन के बारे में राज्य के अपर निदेशक सह राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी (फाइलेरिया) डॉ. परमेश्वर प्रसाद ने बताया कि फाइलेरिया वैसे तो मानव शरीर के पाँच अंगों में होता है लेकिन इसमें हाथीपाँव और हाइड्रोसिल ज्यादा तकलीफदेह हैं. हाइड्रोसिल का इलाज है, इसे ऑपरेशन से ठीक किया जा सकता है. पर बाकी अंगों के फाइलेरिया को ठीक नहीं किया जा सकता है. इसका रोग प्रबंधन कर जीवन को आसान बनाया जा सकता है और तकलीफ को कम किया जा सकता है. उन्होंने बताया कि राज्य में जितने चिन्हित हाइड्रोसिल के मामले हैं वे अगले साल मार्च तक ऑपरेशन कर ठीक कर दिए जाएँगे. सितम्बर से नवम्बर के बीच इसमें से आधे ऑपरेशन हो चुके हैं. अब केवल 10 हजार 483 ऑपरेशन होने को बचे हैं. वहीं, फाइलेरिया कार्यक्रम के राज्य सलाहकार डॉ. अनुज सिंह रावत ने बताया कि पूरी दुनिया में विकलांगता का दूसरा सबसे बड़ा कारण फाइलेरिया है. पूरी दुनिया के फाइलेरिया रोगियों में 40 प्रतिशत केवल भारत में हैं. बिहार का हिस्सा इसमें सबसे ज्यादा है. बिहार के सभी 38 जिले फाइलेरिया प्रभावित हैं.

बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन की कंट्री हेड (हेल्थ एण्ड जेंडर कम्युनिकेशन) पूजा सहगल ने बताया कि इस उपयोगी कार्यशाला के बाद सामुदायिक रेडियो अपने-अपने इलाके में जनमत निर्माण और जागरूकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करेंगे. उन्होंने अपील की कि अपने कार्यक्रमों में सही तथ्यों के साथ सृजनात्मकता का उपयोग करें और आम जनमानस को सही जानकारी दें. कार्यशाला में पिरामल के डॉ. तन्मय महापात्रा सहित सत्येन्द्र कुमार, संजय सुमन, सोमी दास, प्रवीण तिवारी आदि ने भी अलग-अलग विषयों पर विचार व्यक्त किये. कार्यशाला का समापन करते हुए आयोजक संस्था स्मार्ट की संस्थापक निदेशक अर्चना कपूर ने आशा व्यक्त की कि इस जागरूकता कार्यशाला से सामुदायिक रेडियोकर्मियों की जानकारी बढ़ी होगी और वे लोग इससे सम्बन्धित जानकारी जन-जन का पहुंचाने में पहले से ज्यादा गम्भीर पहल करेंगे.

रिपोर्टर

  • Dr. Rajesh Kumar
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